रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे - The Indic Lyrics Database

रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - लता - रफी | संगीत - राहुल देव बर्मन | फ़िल्म - मेला | वर्ष - 1971

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रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे
ओ सजनवा आजा तेरे बिना
ठंडी हवा सही ना जाए
जैसे रुत पे छाए हरियाली गहरी होए मुख पे रंगत नेहा की
खेतों के संग झूमे पवन में फुलवा सपनों के डाली अरमां की
तेरे सिवा कछु सूझे नाहीं अब तो सांवरे
ओ ओय सजनिया जान ले ले कोई मोसे
अब तो लागे नैना तोसे
आजा ओ आजा
मन कहता है दुनिया तज के, जानी बस जाऊं तेरी आँखों में
और मैं गोरी महकी-महकी घुल के रह जाऊं तेरी सांसों में
एक दूजे में यूँ खो जाएँ जग देखा करे