दिल पुकारे आ रे आ रे - The Indic Lyrics Database

दिल पुकारे आ रे आ रे

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - लता - रफी | संगीत - सचिन देव बर्मन | फ़िल्म - जेवल थीफ | वर्ष - 1967

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दिल पुकारे आ रे, आ रे, आ रे
अभी ना जा मेरे साथी
बरसों बीते दिल पे काबू पाते
हम तो हारे, तुम ही कुछ समझाते
समझाती मैं तुमको लाखो अरमां
खो जाते हैं लब तक आते आते
पूछो ना कितनी बातें पडी हैं, दिल में हमारे
पा के तुम को है कैसी मतवाली
आँखें मेरी बिन काजल के काली
जीवन अपना मैं भी रंगी कर लूँ
मिल जाए जो इन होठों की लाली
जो भी है अपना लाई हूँ सब कुछ पास तुम्हारे
महका महका आँचल हलके हलके
रह जाती हो क्यों पलकों से मल के
जैसे सूरज बनकर आये हो तुम
चल दोगे फिर दिन के ढलते ढलते
आज कहो तो मोड़ दूँ बढ़ के, वक्त के धारे