कानहा बजाए बंसरी - The Indic Lyrics Database

कानहा बजाए बंसरी

गीतकार - प्रदीप | गायक - लता, सहगान | संगीत - सी रामचंद्र | फ़िल्म - नास्तिक | वर्ष - 1954

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कानहा बजाए बंसरी और ग्वाले बजाएं मंजीरे
हो गोपियाँ नाचें छुमक छुम
गोरे-गोरे हाथों में कंगना खनके
चंचल पावों में देखो पैंजनिया छनके
ढोलक धमाक बोले झांझ भी झमाक बोले
धूम मची है जमुना तीरे
हो गोपियाँ नाचें छुमक छुम
कानहा बजाए बंसरी...
ना तन का ध्यान रहा ना मन का ध्यान रे
आज सभी सुन्दरियाँ भूली हैं भान रे
सखियों के संग संग
ठनक रही है मृदंग
पुलकित है अंग अंग
मन में उछले तरंग
झूम झूम कामिनिया ऐसी हुई बावली
बालों की लट उलझी रे
हो गोपियाँ नाचें छुमक छुम
कानहा बजाए बंसरी...
छाया बृंदाबन में आज अजब रंग है
धरती चकरा रही है आसमान दंग है
कैसा है ये कमाल
दसों दिशाएं निहाल
जमुना देती है ताल
उड़ने लगी वैजमाल
झुकने लगी डाल डाल
थम गई पवन की चाल
बारह घोड़ों वाला सूरज का रथ भी
चलने लगा रे धीरे धीरे
हो गोपियाँ नाचें छुमक छुम
कानहा बजाए बंसरी...