जुल्फ़ोंवाले को क्या पता घूँघट में जल गई गोरी - The Indic Lyrics Database

जुल्फ़ोंवाले को क्या पता घूँघट में जल गई गोरी

गीतकार - मजरूह | गायक - लता | संगीत - अमरनाथ | फ़िल्म - गरम कोट / क्लर्क और कोट | वर्ष - 1955

View in Roman

जुल्फ़ोंवाले को क्या पता घूँघट में जल गई गोरी
कोई कह दो चहिये प्यार की बस एक नजरिया तोरी
जुल्फ़ोंवाले को क्या पता घूँघट में जल गई गोरी
बस इतना चाहूँ मैं कि मोसे वो अलग न डोले, अलग न डोले
जब उस का मुख देखूँ प्यार से मैं तो हँस के बोले, तो हँस के बोले
मैं उस की बलैया लेऊँ तो मोड़े न कलैया मोरी
जुल्फ़ोंवाले को क्या पता घूँघट में जल गई गोरी
बस इतना चाहूँ मैं कि उस के संग करूँ दो बतियाँ, करूँ दो
बतियाँ
महकूँ मन में उसके गले का हार रहूँ दिन रतिया, रहूँ दिन
रतिया
कभी झटके न वो रूठ के बैया मोरी गोरी गोरी
जुल्फ़ोंवाले को क्या पता घूँघट में जल गई गोरी
हँसने पे न जाना रे कि हँस के मैं जिया बहलाऊँ, जिया
बहलाऊँ
ये तो मेरी आदत है लिये आँसू खड़ी मुसकाऊँ, खड़ी
मुसकाऊँ
मैं हो गई क्या से क्या कोई देखो रे सूरतिया मोरी
जुल्फ़ोंवाले को क्या पता घूँघट में जल गई गोरी
कोई कह दो चहिये प्यार की बस एक नजरिया तोरी
जुल्फ़ोंवाले को क्या पता घूँघट में जल गई गोरी