रोज रोज आँखों तले, एक ही सपना चले - The Indic Lyrics Database

रोज रोज आँखों तले, एक ही सपना चले

गीतकार - गुलजार | गायक - आशा - अमित कुमार | संगीत - राहुल देव बर्मन | फ़िल्म - जीवा | वर्ष - 1986

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रोज़ रोज़ आँखों तले
एक ही सपना चले
रातभर काजल जले
आँख में जिस तरह ख़्वाब का दीया जले
जब से तुम्हारें नाम की मिसरी होंठ लगाई है
मीठा सा ग़म है और मीठी सी तनहाई है
छोटी सी दिल की उलझन है ये सुलझा दो तुम
जीना तो सीखा है मर के मरना सीखा दो तुम
आँखों पर कुछ ऐसे तुमने जुल्फ गिरा दी है
बेचारे से कुछ ख्वाबों की नींद उड़ा दी है