जीवन के सफ़र में राही, मिलते हैं बिछड़ जाने को - The Indic Lyrics Database

जीवन के सफ़र में राही, मिलते हैं बिछड़ जाने को

गीतकार - साहिर | गायक - किशोर | संगीत - एस डी बर्मन | फ़िल्म - मुनीमजी | वर्ष - 1955

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जीवन के सफ़र में राही, मिलते हैं बिछड़ जाने को
और दे जाते हैं यादें, तनहाई में तड़पाने को
जीवन के सफ़र...
ये रूप की दौलत वाले, कब सुनते हैं दिल के नाले
तक़दीर न बस में डाले, इनके किसी दीवाने को
जीवन के सफ़र...
जो इनकी नज़र से खेले, दुख पाए मुसीबत झेले
फिरते हैं ये सब अलबेले, दिल लेके मुकर जाने को
जीवन के सफ़र...
दिल लेके दग़ा देते हैं, इक रोग लगा देते हैं
हँस-हँस के जला देते हैं, ये हुस्न के परवाने को
जीवन के सफ़र...
अब साथ न गुज़रेंगे हम, लेकिन ये फ़िज़ा रातों की
दोहराया करेगी हरदम, इस प्यार के अफ़साने को
जीवन के सफ़र...
रो-रो के इन्हीं राहों में, खोना पड़ा एक अपने को
हँस-हँस के इन्हीं राहों में अपनाया था बेगाने को
तुम अपनी नयी दुनिया में खो जाओ पराये बन कर
जी पायें तो जी लेंगे हम, मरने की सज़ा पाने को