गीतकार - जिगर मुरादाबादी | गायक - आशा भोंसले, अनूप जलोटा | संगीत - लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल | फ़िल्म - बेरहमी | वर्ष - 1980
View in Roman बह जायें तो मीता हैं, रह जायें तो दाना हैहै इश्क़-ए-जुनोओन पेशा, हाँ इश्क़-ए-जुनोओन पेशइक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फ़ैले तो ज़माना हैहम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़सान है
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना हैये इश्क़ नहीं आसाँ, बस इतना समझ लीजे
एक आग का दरिया है और डूब के जाना हैवो हुस्न-ओ-जमाल उन का, ये इश्क़-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है, मरने का ज़माना हैअश्क़ों के तबस्सुम में, आहों के तरन्नुम में
मासूम मुहब्बत का मासूम फ़साना हैक्या हुस्न ने समझा है, क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की, ठोकर में ज़माना हैया वो थे ख़फ़ा हम से या हम थे ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था, आज अपना ज़माना हैआँसू तो बहुत से हैँ आँखों में 'एक्स' लेकिन
बह जायें तो मीता हैं, रह जायें तो दाना हैहै इश्क़-ए-जुनोओन पेशा, हाँ इश्क़-ए-जुनोओन पेश
एक सितमगर को आज, हँस हँस के रुलान है