गम ए हस्ती से बस बेगाना होता - The Indic Lyrics Database

गम ए हस्ती से बस बेगाना होता

गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - रोशन | फ़िल्म - वल्लाह क्या बात है | वर्ष - 1962

View in Roman

ग़म-ए-हस्ती से बस बेगाना होता
ख़ुदाया काश मैं दीवाना होता
ग़म-ए-हस्ती से बस बेगाना(चली आती क़यामत अंजुमन में)-२
गुलों को आग लग जाती चमन में
अलग बैठा
अलग बैठा कोई मस्ताना होता
ख़ुदाया काश मैं दीवाना होता
ग़म-ए-हस्ती से बस बेगानाजो देखा है सुना है ज़िंदगी में
वो बनके दर्द रह जाता ना जी में
फ़क़त एक ख़्वाब
फ़क़त एक ख़्वाब एक अफ़साना होता
ख़ुदाया काश मैं दीवाना होता
ग़म-ए-हस्ती से बस बेगाना(उसी दीवानगी में बेख़ुदी में)-२
न खुलती आँख सारी ज़िंदगी में
सदा ग़र्दिश में
सदा ग़र्दिश में इक पैमाना होता
ख़ुदाया काश मैं दीवाना होता
ग़म-ए-हस्ती से बस बेगाना होता
ख़ुदाया काश मैं दीवाना होता