जब उसने गेसू बिखराये - The Indic Lyrics Database

जब उसने गेसू बिखराये

गीतकार - मजरूह | गायक - शमशाद | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - शाहजहां | वर्ष - 1946

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जवानी के दामन को रंगीं बना ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले

उठा ले मोहब्बत की तोहमत उठा ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले

तेरे रूख़ पे आयेगी रंगत सहर की

हँसा देगी कलिल्यों को शोख़ी नज़र की

ये नज़रें किसी से मिलाकर झुका ले

उठा ले मोहब्बत की तोहमत उठा ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले

ये बदमस्त रातों का घहवारा ? ज़ुल्फ़ें

ये जोशएजवानी ये आवारा ज़ुल्फ़ें

इन आवारा ज़ुल्फ़ों की रातें बसा ले

उठा ले मोहब्बत की तोहमत उठा ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले

निकल कर उलझना उलझकर निकलना

है इन्साँ की अज़मत सौ काँटों में चलना

ये क्या है जो गुल से भी दामन बचा ले

उठा ले मोहब्बत की तोहमत उठा ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले

ये रातें तुझे गुदगुदायेंगी लेकिन

ये आँखें तेरी मुस्कुरायेंगी लेकिन

अगर ये ख़लिश अपने दिल में बसा ले

उठा ले मोहब्बत की तोहमत उठा ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले

बीयावाँ भी है गुलसिताँ दिल के हाथों

ये दुनिया है दुनिया यहाँ दिल के हाथों

बहोत है अगर दो घड़ी मुस्कुरा ले

उठा ले मोहब्बत की तोहमत उठा ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले

जवानी तो है एक शय आनीजानी

बनाती है उल्फ़त इसे गैरफ़ानी

जवानी को आ गैरफ़ानी बना ले

उठा ले मोहब्बत की तोहमत उठा ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले

उठा ले मोहब्बत की तोहमत उठा ले

जवानी के दामन को रंगीं बना ले