देख के अकेली मोहे बरखा सताए - The Indic Lyrics Database

देख के अकेली मोहे बरखा सताए

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - गीता दत्त | संगीत - सचिन देव बर्मन | फ़िल्म - बाज़ी | वर्ष - 1951

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देख के अकेली मोहे बरखा सताए
गालों को चूमे कभी छींटें उड़ाए रे
टिप टिप टिप टिप टिप टिप टिप टिप उई
चली न जाए चाल लचकूँ जैसे डाल
साड़ी भीगी चोली हीगी भीगे गोरे गाल
लूटे हार सिंगार पापी जल की धार
खुली सड़क पे लूट गई लोगो मैं अलबेली नार
पाँव फिसलता जाए तन हिचकोलें खाए
ऐसे में जो हाथ पकड़ ले मन उसका हो जाए