दिन गुज़रा रात आई रे बालम - The Indic Lyrics Database

दिन गुज़रा रात आई रे बालम

गीतकार - गुलाम मोहम्मद | गायक - सुरैया | संगीत - गुलाम मोहम्मद | फ़िल्म - काजल | वर्ष - 1948

View in Roman

दो दिलों को ये दुनिया मिलने ही नहीं देती

दो दिलों को ये दुनिया मिलने ही नहीं देती

आशाओं की कलियों को खिलने ही नहीं देती

इक बाग़ में क्या देखा बुल्बुल वहां रोता था

और पास खड़ा माली कुछ हार पिरोता था

दिल चीर के इक फूल का ख़ुश कितना वो होता था

बुल्बुल था तड़प जाता जब सूई चभोता था

दुख सह न सका बुल्बुल कुछ कह न सका बुल्बुल

फिर बहने लगे आँसू और कहने लगे आँसू

ख़्या ?

दो दिलों को ये दुनिया

तुम मुझ से ये फूछो गे क्या फूल की हालत थी

रूठा हुआ माली था बिगड़ी हुई क़िसमत थी

आँखों में तो आँसू थे बेचैन तबिअत थी

सुनसान था दिल उसका बरबाद मुहब्बत थी

बुल्बुल से जुदा हो कर माली से ख़फ़ा हो कर

कांटों में लगा रहने और फूल लगा कहने

क्या ?

दो दिलों को ये दुनिया