मरीज़-ए-मोहब्बत उन्हीं का फ़साना - The Indic Lyrics Database

मरीज़-ए-मोहब्बत उन्हीं का फ़साना

गीतकार - क़मर जलालवी | गायक - Nil | संगीत - Nil | फ़िल्म - Nil | वर्ष - Nil

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मरीज़-ए-मोहब्बत उन्हीं का फ़साना
सुनाता रहा दम निकलते निकलते
मगर ज़िक्र-ए-शाम-ए-अलम जब के आया
चिराग-ए-सहर बुझ गया जलते जलते
इरादा था तर्क-ए-मोहब्बत का लेकिन
फरेब-ए-तबस्सुम में फिर आ गए हम
अभी खा के ठोकर संभलने न पाए
कि फिर खाई ठोकर संभलते संभलते
उन्हें खत में लिखा था दिल मुज़्तरिब है
जवाब उन का आया मोहब्बत ना करते
तुम्हे दिल लगाने को किसने कहा था
बहल जाएगा दिल बहलते बहलते
मगर कोई वादा खिलाफ़ी की हद है
हिसाब अपने दिल में लगाकर तो देखो
क़यामत का दिन आ गया रफ़्ता रफ़्ता
मुलाक़ात का दिन बदलते बदलते
वो मेहमाँ रहे भी तो कब तक हमारे
हुई शमां गुल और ना डूबे सितारे
'क़मर' इस कदर उनको जल्दी थी घर की
वो घर चल दिये चाँदनी ढलते ढलते