बुझ गये हम दर्द के मारों का - The Indic Lyrics Database

बुझ गये हम दर्द के मारों का

गीतकार - हसरत जयपुरी | गायक - तलत महमूद | संगीत - शंकर, जयकिशन | फ़िल्म - दाग | वर्ष - 1952

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बुझ गये ग़म की हवा से, प्यार के जलते चराग
बेवफ़ाई चाँद ने की, पड़ गया इसमें भी दागहम ददर् के मारों का, इतना ही फ़साना है
पीने को शराब-ए-ग़म, दिल गम का निशाना है(दिल एक खिलौना है, तक़दीर के हाथों में)-२
तकदीर के हाथों में
मरने की तमन्ना है, जीने का बहाना है
हम ददर् के मारों का, इतना ही फ़साना है(देते हैं दुआएं हम)-२, (दुनिया की जफ़ाओं को)- २
क्यों उनको भुलाएं हम, अब खुद को भुलाना है
हम ददर् के मारों का, इतना ही फ़साना है(हँस हँस के बहारें तो, शबनम को रुलाती हैं)-२
शबनम को रुलाती हैं
आज अपनी मुहब्बत पर, बगिया को रुलाना है
हम ददर् के मारों का, इतना ही फ़साना है