गीतकार - प्रकाश मेहरा | गायक - किशोर कुमार | संगीत - बप्पी लाहिड़ी | फ़िल्म - शराबी | वर्ष - 1984
View in Romanमंज़िलों पे आ के लूटते हैं दिलों के कारवाँ
कश्तियाँ साहिल पे अक्सर डूबती हैं प्यार की
मंज़िलें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह
जब कदम ही साथ ना दे तो मुसाफ़िर क्या करे
यूं तो है हमदर्द भी और हमसफ़र भी है मेरा
बढ़ के कोई हाथ ना दे, दिल भला फिर क्या करे
डूबनेवाले को तिनके का सहारा ही बहुत
दिल बहल जाए फ़क़त इतना इशारा ही बहुत
इतने पर भी आसमां वाला गिरा दे बिजलियाँ
कोई बतला दे ज़रा ये डूबता फिर क्या करे
प्यार करना जुर्म है तो जुर्म हमसे हो गया
काबिल-ए-माफी हुआ, करते नहीं ऐसे गुनाह
संगदिल है ये जहां और संगदिल मेरा सनम
क्या करे जोश-ए-जुनून और हौसला फिर क्या करे