एक दो तीन चार रूप की दुश्मन पापी दुनिया - The Indic Lyrics Database

एक दो तीन चार रूप की दुश्मन पापी दुनिया

गीतकार - शकील बदायुँनी | गायक - सहगान, शमशाद बेगम | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - जादू | वर्ष - 1951

View in Roman

को : एक दो तीन चार, पचाका चिका छुम -४श : रूप की दुश्मन पापी दुनिया मारे मोहे अखियाँ
हो मैं क्या जानूँ राम
मैं क्या जानूँ राम किसी के लोभी मन की बतियाँ
( मारे अखियाँ
को : पचाका चिका छुम ) -२श : एक रूप के लाख पुजारी, गोरे काले हलके भारी
किसी को क्या मालूम लड़ी है किस बालम से आँख हमारी
लड़ी है किस बालम से आँख
ए जी हमसे
श : नहीं नहीं नहीं नहीं इनसे
लम्बी नाक है इनकी, आँखों पे तिशमा सवार है
का हमसे
श : अरे नहीं नहीं नहीं नहीं इनसे
सूखे गाल हैं इनके, सूरत भी काला बुखार है
सूरत भी काला बुखार है
ओ जी गोरी हमसे, ओह हो
श : अरे छी छी छीमैं क्या जानूँ राम किसी के लोभी मन की बतियाँ
मारे अखियाँ
को : पचाका चिका छुम
श : मारे अखियाँ
रूप की दुश्मन पापी दुनिया मारे मोहे अखियाँ
हो मैं क्या जानूँ रामश : छैल-छबीला है बाँका बालम हो
बनी हूँ मैं जिनकी दीवानी
पिया ही जाने भेद जिया का
किसको सुनाऊँ प्यार की बानी किसको सुनाऊँ मैं
अजी हमको
श : नहीं नहीं नहीं नहीं उनको
भेंगी आँख है जिनकी, मूछों पर छाई बहार है
का हमको
श : अरे नहीं नहीं नहीं नहीं अरे उनको
मुखड़ा चाँद है जिनका, नैनों में जिनके ख़ुमार है
नैनों में जिनके ख़ुमार है
कौन वो सिपहिया और हम
श : अरे जा जा जामैं क्या जानूँ राम किसी के लोभी मन की बतियाँ
मारे अखियाँ
को : पचाका चिका छुम
श : मारे अखियाँ
रूप की दुश्मन पापी दुनिया मारे मोहे अखियाँ
हो मैं क्या जानूँ राम