जहान कहीं दीपक जलाता है जो इक बार कह दो - The Indic Lyrics Database

जहान कहीं दीपक जलाता है जो इक बार कह दो

गीतकार - शैलेंद्र सिंह | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - शंकर, जयकिशन | फ़िल्म - पूजा | वर्ष - 1954

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जहाँ कहीं दीपक जलता है
वहाँ पतंगा भी आता है
प्रीत की रीत यही है मूरख
तू काहे पछताता है
परवाने की नादानी पर दुनिया
हँसती है तो हँसे
प्यार की मीठी आग में प्रेमी
हँसते हँसते जल जाता हैजो इक बार कह दो के तुम हो हमारे
तो बदले ये दुनिया बदलें नज़ारे
जो इक बार कह दोआकाश में, आकाश में चाँद तारे हँसें
हमारे ही दिल में अँधेरा बसे
निगाहों की गलियों में चोरी से आके
जो तुम मुस्कुरा दो तो खिल जायें तारे
जो इक बार कह दोसुहानी है ये, सुहानी है ये ज़िंदगी प्यार से
है मूरख जो पछताये दिल हार के
ये बाज़ी है दुनिया में सबसे निराली
जो हारे सो जीते जो जीते वो हारे
जो इक बार कह दो