दो दिवाने शहर में - The Indic Lyrics Database

दो दिवाने शहर में

गीतकार - गुलजार | गायक - भूपिंदर, रूना लैला | संगीत - जयदेव | फ़िल्म - | वर्ष - 1977

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Dialogs first:
भू: एक दीवाना शहर में
रू: एक दीवाना नहीं, एक दीवानी भी
भू: Hmm? hmm-hmm. [it is hard to transcribe sounds! :-)]then the song starts:
भू: दो दीवाने शहर में, रात में और दोपहर में
आब-ओ-दाना ढूँढते हैं एक आशियाना ढूँढते हैं
रू: दो दीवाने शहर में, रात में और दोपहर में
आब-ओ-दाना ढूँढते हैं एक आशियाना ढूँढते हैंरू: इन भूलभुल{}इया गलियों में, अपना भी कोई घर होगा
अम्बर पे खुलेगी खिड़की या, खिड़की पे खुला अम्बर होगा
भू: इन भूलभुल{}इया गलियों में, अपना भी कोई घर होगा
अम्बर पे खुलेगी खिड़की या, खिड़की पे खुला अम्बर होगा
असमानी रंग की आँखों में
रू: असमानी या आसमानी?
भू: असमानी रंग की आँखों में
बसने का बहाना ढूंढते हैं, ढूंढते हैं
रू: आबोदाना ढूंढते हैं एक आशियाना ढूंढते हैंभू: जब तारे ज़मीं पर चलते हैं
रू: तारे, और ज़मीं पर?
भू: of course
भू: जब तारे ज़मीं पर चलते हैं
रू: Hmmm hmmm
भू: आकाश ज़मीं हो जाता है
रू: आ आ आ
भू: उस रात नहीं फिर घर जाता, वो चांद यहीं सो जाता है
रू: जब तारे ज़मीं पर चलते हैं
आकाश ज़मीं हो जाता है
उस रात नहीं फिर घर जाता, वो चांद यहीं सो जाता है
भू: पल भर के लिये
रू: पल भर के लिये
भू: पल भर के लिये इन आँखों में हम एक ज़माना ढूंढते हैं, ढूंढते हैं
रू: आबोदाना ढूंढते हैं एक आशियाना ढूंढते हैंएक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में
आब-ओ-दाना ढूँढता है, आशियाना ढूँढता हैदिन खाली खाली बर्तन है, और रात है जैसे अंधा कुँवा
इन सूनी अन्धेरी आँखों में, आँसू की जगह आता हैं धुँ_आ
जीने की वजह तो कोई नहीं, मरने का बहाना ढूँढता है
एक अकेला इस शेहर मेंइन उम्र से लम्बी सड़कों को, मन्ज़िल पे पहुँचते देखा नहीं
बस दौड़ती फिरती रहती हैं, हम ने तो ठहरते देखा नहीं
इस अजनबी से शेहर में, जाना पहचाना ढूँढता है
एक अकेला इस शेहर में