गीतकार - आनंद बख्शी | गायक - लता मंगेशकर, मुकेश | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - सुनहरा संसार | वर्ष - 1975
View in Romanमु : कहीं सावन में भी ये दिल न तरसे
ल : घटा छाई तो है बरसे न बरसेभीगी-भीगी हवा है काली-काली घटा है
घटा पे तो शक़ हो सकता है तुम पे नहीं हो
मु : भीगी-भीगी हवा है ...ल : दिल दीवाने दीवारों को तोड़ के मिल जाते हैं
जब फूलों को खिलना हो तो पतझड़ में खिल जाते हैं
ऐसे अक्सर हुआ है ऐसा हो ये दुआ है
दुआ पे तो शक़ हो सकता है तुम पे नहीं होमु : इस दुनिया से डर के किसने यार का दामन छोड़ दिया
वो हरजाई कहलाया है जिसने वादा तोड़ दिया
आशिक़ से सुना है चाहत में वफ़ा है
वफ़ा पे तो शक़ हो सकता है तुम पे नहीं होल : वक़्त पे दिन ढलता है वक़्त पे चाँद निकलता है
मु : कोई तो है इस परदे में कौन इशारा करता है
ल : कोई जादू है क्या
मु : कहते हैं ख़ुदा है
दो : ख़ुदा पे तो शक़ हो सकता है तुम पे नहीं हो
ल : तुम पे नहीं
मु : तुम पे नहीं