मचल के जब भी आँखों से छलक - The Indic Lyrics Database

मचल के जब भी आँखों से छलक

गीतकार - गुलजार | गायक - भूपेंद्र | संगीत - कानू रॉय | फ़िल्म - गृह प्रवेश | वर्ष - 1979

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मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
सुना है आबोशारों को बड़ी तकलीफ़ होती है
खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
चरागों से मजारों को बड़ी तकलीफ़ होती है

कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे हैं
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होती है
तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम खांकसारों को बड़ी तकलीफ़ होती है