दौलत के झूठे नशे में हो चूर - The Indic Lyrics Database

दौलत के झूठे नशे में हो चूर

गीतकार - भरत व्यास | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - पं. शिवराम | फ़िल्म - ऊँची हवेली | वर्ष - 1955

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दौलत के झूठे नशे में हो चूर
गरीबों की दुनिया से रहते हो दूर
अजी एक दिन ऐसा आएगा
जब माटी में सब मिल जाएगा
माटी ही ओढ़न माटी बिछावन
माटी का तन बन जाएगा
माटी में सब मिल जाएगा
ऊँचे आसमान से भी ऊँची तेरी आस है
पर कभी सोचा नहीं गिनती की तेरी साँस है
इसका तू हिसाब कर अँगूठा उँगलियों पे धर
कितनी खर्च कर रहा भलाई में
कितनी तू लगा रहा बुराई में
भलाई का फल रह जाएगा
बाकी माटी में सब मिल जाएगा
माटी ही ओढ़न माटी बिछावन
माटी का तन बन जाएगा
माटी में सब मिल जाएगा
ऊँची हवेली ये ऊँचे महल
पलभर में जाएंगे पगले बदल
ले तू किसीकी दुआओं का फल
बदी से तू टल और नेकी पे चल
जैसा बोएगा वैसा पाएगा
बाकी माटी में सब मिल जाएगा