गीतकार - राजेन्द्र कृष्ण | गायक - महेंद्र कपूर | संगीत - कल्याणजी आनंदजी | फ़िल्म - गोपी | वर्ष - 1970
View in Romanहे जी रे
रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका कौआ मोती खाएगा
हे जी रे, हे जी रे
सिया ने पूछा, भगवन कलयुग में धर्म कर्म को कोई नहीं मानेगा?
तो प्रभु बोले,
धरम भी होगा, करम भी होगा
परन्तु शर्म नहीं होगी
बात-बात में मात-पित को बेटा आँख दिखाएगा
राजा और प्रजा दोनों में होगी निस-दिन खींचा-तानी
कदम-कदम पर करेंगे दोनों अपनी-अपनी मनमानी
जिसके हाथ में होगी लाठी भैंस वही ले जाएगा
सुनो सिया कलयुग में काला धन और काले मन होंगे
चोर उचक्के नगरसेठ और प्रभु-भक्त निर्धन होंगे
जो होगा लोभी और भोगी वो जोगी कहलायेगा
मंदिर सूना सूना होगा भरी रहेंगी मधुशाला
पिताके संग-संग भरी सभा में नाचेंगी घर की बाला
कैसा कन्यादान पिताही कन्या का धन खायेगा
हे जी रे
मूरख की प्रीत बुरी, जुए की जीत बुरी
बुरे संग बैठ चैन भागे ही भागे
भागे ही भागे
काजल की कोठरी में कैसो ही जतन करो
काजल का दाग़ भाई लागे ही लागे
हे जी रे
कितना जती हो कोई, कितना सती हो कोई
कामनी के संग काम जागे ही जागे
सुनो कहे गोपीराम जिसका है नाम काम
उसका तो फंद गले लागे ही लागे
हे जी रे