ओ पत्थर के इंसां ममता का रंग मैदान - The Indic Lyrics Database

ओ पत्थर के इंसां ममता का रंग मैदान

गीतकार - इन्दीवर | गायक - शब्बीर कुमार | संगीत - बप्पी लाहिड़ी | फ़िल्म - धर्म अधिकारी | वर्ष - 1986

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ओ पत्थर के इन्सान ओ नीतिवान इन्सान
ममता का रंग मैदान जीवन शतरंज समान
तूने अपने घर्वाले मोहरे बना डाले
तेरा धर्म तो जीत गया तेरे पास बचा अब क्याबन्द करो ये वाद विवाद कहां सीखा है ये तर्क वितर्क
मैं उस कुल का जिसमें हुआ है सदा धर्म का पालन
आदर्शों के साथ बंधा है मेरा सारा जीवन
मेरे धर्म की साक्षी मेरी जीवन साथी
ये तुम्हें बतलाएगीलांघी मैने लक्ष्मन रेखा बदला नसीब मेरा
वचन पति का पत्नी को गीता इससे बच न सकी कोई सीतातेरा ये व्यवहार क्या न्याय पे नहीं प्रहार
नहीं नहीं
ममता का रंग मैदान ...धर्मपीठ मेरे घर से चली मेरे पुरखों की ये देन
सत्य धर्म सो जाये भले सोएं न मेरे नैन
मेरे नयनों के समान ये मेरी सन्तान
करेगी मेरा बखानजन्मी मैं फूल बनके रह गई मैं शूल बनके
पिता मेरे परमेश्वर जैसे नीति बदलेगी कैसेमन रोए नैन मुस्काएं क्या मर गया तेरा न्याय
नहीं नहीं
ममता का रंग मैदान ...