रात कली एक ख्वाब में आई और गले का हर हुई - The Indic Lyrics Database

रात कली एक ख्वाब में आई और गले का हर हुई

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - किशोर कुमार | संगीत - आर डी बर्मन | फ़िल्म - बुदढ़ा मिल गया | वर्ष - 1971

View in Roman

रात कली एक ख्वाब में आई, और गले का हार हुई
सुबह को जब हम नींद से जागे, आँख तुम्ही से चार हुई
रात कली एक ख्वाब में आई, और गले का हार हुईचाहे कहो इसे, मेरी मोहब्बत, चाहे हँसीं में उड़ा दो
ये क्या हुआ मुझे, मुझको खबर नहीं, हो सके, तुम ही बता दो
तुमने कदम जो, रखा ज़मीं पर, सीने में क्यों झंकार हुई
रात कली ...आँखोंमें काजल, और लटोंमें, काली घटा का बसेरा
साँवली सूरत, मोहनी मूरत, सावन रुत का सवेरा
जबसे ये मुखड़ा, दिल मे खिला है, दुनिया मेरी गुलज़ार हुई
रात कली ...यूँ तो हसीनों के, महजबीनों के, होते हैं रोज़ नज़ारे
पर उन्हें देख के, देखा है जब तुम्हें, तुम लगे और भी प्यारे
बाहों में ले लूँ, ऐसी तमन्ना, एक नहीं, कई बार हुई
रात कली ...