ना जाने कैसी बुरी घड़ी में अर्थी नहीं नारी का - The Indic Lyrics Database

ना जाने कैसी बुरी घड़ी में अर्थी नहीं नारी का

गीतकार - गोपाल सिंह नेपाली | गायक - मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले | संगीत - चित्रगुप्त | फ़िल्म - नाग पंचमी | वर्ष - 1953

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न जाने कैसी बुरी घड़ी में दुल्हन बनी एक अभागन
पिया की अर्थी लेकर चली होने सती सुहागनअर्थी नहीं नारी का सुहाग जा रहा है
भगवान तेरे घर का सिंगार जा रहा हैबजता था जीवन का गीत दो साँसों के तारों में
टूटा है जिसका तार वो सितार जा रहा है
भगवान तेरे घर का ...जलता था जब तक जलती रही चिंगारी
बुझने को अब तन का अंगार जा रहा है
भगवान तेरे घर का ...भव सागर की लहरों में बिछड़े ऐसे दो साथी
सजनी मँझधार साजन उस पार जा रहा है
भगवान तेरे घर का ...