दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली - The Indic Lyrics Database

दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली

गीतकार - इन्दीवर | गायक - महेंद्र कपूर | संगीत - कल्याणजी आनंदजी | फ़िल्म - पूरब और पश्चिम | वर्ष - 1970

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पूरब में सूरज ने छेड़ी जब किरणों की शहनाई
चमक उठा सिन्दूर गगन पे पश्चिम तक लाली छाई
दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली
बाहों मे लहराये गंगा जमुना, देख के दुनिया डोली
दुल्हन चली, ओ पहन चली
ताजमहल जैसी ताज़ा है सूरत
चलती फिरती अजंता की मूरत
मेल मिलाप की मेहंदी रचाए, बलिदानों की रंगोली
दुल्हन चली, ओ पहन चली
मुख चमके ज्यूँ हिमालय की चोटी
हो ना पड़ोसी की नियत खोटी
ओ घरवालो ज़रा इसको संभालो, ये तो है बड़ी भोली
दुल्हन चली, ओ पहन चली
और सजेगी अभी और सँवरेगी
चढ़ती उमरिया है और निखरेगी
अपनी आज़ादी की दुल्हनिया, बीस के उपर हो ली
दुल्हन चली, ओ पहन चली
देश प्रेम ही आज़ादी की दुल्हनिया का वर है
इस अलबेली दुल्हन का सिंदूर सुहाग अमर है
माता है कस्तूरबा जैसी, बाबुल गांधी जैसे
चाचा इसके नेहरू शास्त्री, डरे न दुश्मन कैसे
वीर शिवाजी जैसे वीरन, लक्ष्मीबाई बहना
लक्ष्मण जिस के बोस, भगत सिंग, उसका फिर क्या कहना
जिसके लिए जवान बहा सकते है खून की गंगा
आगे पीछे तीनो सेना ले के चले तिरंगा
सेना चलती है ले के तिरंगा
हो कोई हम प्रांत के वासी, हो कोई भी भाषा भाषी
सबसे पहले हैं भारतवासी