सुलगती हैं आंखें गले से लगा लो की जी चाहता है - The Indic Lyrics Database

सुलगती हैं आंखें गले से लगा लो की जी चाहता है

गीतकार - समीर | गायक - अनुराधा पौडवाल, मोहम्मद अज़ीज़ | संगीत - आनंद, मिलिंद | फ़िल्म - | वर्ष - 1997

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सुलगती हैं आँखें तरसती हैं बाहें गले से लगा लो कि जी चाहता है
मुझे खाक़ कर दो मुझे राख कर दो मुझे फूंक डालो कि जी चाहता है
सुलगती हैं ...उधर भी है तूफ़ां इधर भी है तूफ़ां भंवर से निकालो कि जी चाहता है
सुलगती हैं ...यहां तक तो पहुंचे यहां तक तो आए सनम तुझ पे डालूं ज़ुल्फ़ों के साए
ये रुकना मचलना मचलकर स.म्भलना ये परदे हटा दो कि जी चाहता है
सुलगती हैं ...बहारों के दिन हैं जवानी की रातें ये दो चार हैं मेहरबानी की रातें
नशा आ रहा है सबर जा रहा है ये रातें मना लो कि जी चाहता है
सुलगती हैं ...