दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी अँखियाँ प्यासी रे - The Indic Lyrics Database

दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी अँखियाँ प्यासी रे

गीतकार - जी एस नेपाली | गायक - हेमंत, मन्ना डे, सुधा मल्होत्रा | संगीत - रवि | फ़िल्म - नरसी भगत | वर्ष - 1957

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दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी
अँखियाँ प्यासी रे
मन-मंदिर की ज्योति जगा दो
घट-घट बासी रे ...
मंदिर-मंदिर मूरत तेरी
फिर भी न दीखे सूरत तेरी
युग बीते न आई मिलन की
पूरणमासी रे ...
द्वार दया का जब तू खोले
पंचम सुर में गूँगा बोले
अंधा देखे, लँगड़ा चलकर
पहुँचे काशी रे ...
पानी पीकर प्यास बुझाऊँ
नैनन को कैसे समझाऊँ
आँख मिचौली छोड़ो अब तो
मन के बासी रे ...

दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी
अँखियाँ प्यासी रे
मन मंदिर की ज्योति जगा दो
घट-घट बासी रे ...
निर्बल के बल धन निर्धन के
तुम रखवाले भक्त जनों के
तेरे भजन में सब सुख पाऊँ
मिटे उदासी रे ...
नाम जपे पर तुझे न जाने
उनको भी तू अपना माने
तेरी दया का अंत नहीं है
हे दुख नासी रे ...

आज फ़ैसला तेरे द्वार पर
मेरी जीत है तेरे हार पर
हार-जीत है तेरी, मैं तो
चरण उपासी रे
दर्शन दो घनश्याम नाथ, मोरी
अँखियाँ प्यासी रे
मन मंदिर की ज्योति जगा दो
घट-घट बासी रे
द्वार खड़ा कब से मतवारा
माँगे तुमसे हार तुम्हारा
नरसी की ये बिनती सुन लो
भक्त विलासी रे ...
लाज न लुट जाए प्रभु तेरी
नाथ करो ना दया में देरी
तीनों लोक छोड़कर आओ
गगन निवासी रे ...$