ओ मेरे सनम, ओ मेरे सनम - The Indic Lyrics Database

ओ मेरे सनम, ओ मेरे सनम

गीतकार - शैलेंद्र | गायक - लता - मुकेश | संगीत - शंकर जयकिशन | फ़िल्म - संगम | वर्ष - 1964

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ओ मेरे सनम, ओ मेरे सनम
दो जिस्म मगर एक जान हैं हम
एक दिल के दो अरमान हैं हम
तन सौंप दिया, मन सौंप दिया, कुछ और तो मेरे पास नहीं
जो तुम से है मेरे हमदम भगवान से भी वो आस नहीं
जिस दिन से हुये एक दूजे के, इस दुनिया से अन्जान हैं हम
सुनते हैं प्यार की दुनिया में, दो दिल मुश्किल से समाते हैं
क्या गैर वहाँ अपनों तक के साये भी ना आने पाते हैं
हम ने आख़िर क्या देख लिया, क्या बात है क्यों हैरान हैं हम
मेरे अपने अपना ये मिलन संगम है ये गंगा जमुना का
जो सच है सामने आया है, जो बीत गया एक सपना था
ये धरती है इन्सानों की, कुछ और नहीं इन्सान हैं हम