आँखों की गुस्ताखियाँ माफ हो - The Indic Lyrics Database

आँखों की गुस्ताखियाँ माफ हो

गीतकार - महबूब | गायक - कविता कृष्णमुर्ती - कुमार सानू | संगीत - इस्माइल दरबार | फ़िल्म - हम दिल दे चुके सनम | वर्ष - 1999

View in Roman

आँखों की गुस्ताखियाँ मांफ हो, टिकटूक तुम्हे देखती हैं
जो बात कहना चाहे ज़ुबां, तुम से ये वो कहती हैं
आँखों की शर्म-ओ-हया मांफ हो, तुम्हे देख के झुकती हैं
उठी आँखे जो बात ना कह सकी, झुकी आँखे वो कहती हैं
काजल का एक तील तुम्हारे लबों पे लगा लूँ
चंदा और सूरज की नज़रों से तुमको बचा लूँ
पलकों की चिलमन में आओ मैं तुमको छुपा लूँ
ख़यालों की ये शोखियाँ मांफ हो
हरदम तुम्हे सोचती हैं
जब होश में होता है जहां, मदहोश ये करती हैं
ये ज़िन्दगी आपकी ही अमानत रहेगी
दिल में सदा आपकी ही मोहब्बत रहेगी
इन साँसों को आप की ही ज़रूरत रहेगी
इस दिल की नादानियाँ मांफ हो
ये मेरी कहाँ सुनती हैं
ये पलपल जो होती हैं बेकल सनम तो सपने नये बुनती हैं