मैंने देखा है कि फूलों से लदी शाख़ों में - The Indic Lyrics Database

मैंने देखा है कि फूलों से लदी शाख़ों में

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - आशा - महेंद्र कपूर | संगीत - रवि | फ़िल्म - वक्त | वर्ष - 1965

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मैंने देखा है कि फूलों से लदी शाख़ों में
तुम लचकती हुई यूँ मेरे क़रीब आई हो
जैसे मुद्द्त से यूँ ही साथ रहा हो अपना
जैसे अब की नहीं, सदियों की शनासाई हो

मैंने देखा है कि गाते हुए झरनों के करीब
अपनी बेताबी-ए-जज़्बात कही है तुमने
काँपते होंटों से, रुकती हुई आवाज़ के साथ
जो मेरे दिल में थी वो बात कही है तुमने
आँच देने लगा क़दमों के तले बर्फ़ का फ़र्श
आजा जाना कि मोहब्बत में है गर्मी कितनी
संग-ए-मर्मर की तरह सख़्त बदन में तेरे
आ गई है मेरे छू लेने से नर्मी कितनी
हम चले जाते हैं और दूर तलक कोई नहीं
सिर्फ़ पत्तों के चटख़ने की सदा आती है
दिल में कुछ ऐसे ख़यालात ने करवट ली है
मुझको तुमसे नहीं अपने से हया आती है
मैंने देखा है कि कोहरे से भरी वादी में
मैं ये कहता हूँ चलो आज कहीं खो जाएं
मैं ये कहती हूँ कि खोने की ज़रूरत क्या है
ओढ़कर धुन्ध की चादर को यहीं सो जाएं