अपनी उल्फत पे जमाने का ना पहरा होता - The Indic Lyrics Database

अपनी उल्फत पे जमाने का ना पहरा होता

गीतकार - हसरत जयपुरी | गायक - लता मंगेशकर - मुकेश | संगीत - शंकर जयकिशन | फ़िल्म - ससुराल | वर्ष - 1961

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अपनी उल्फत पे जमाने का ना पहरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता
प्यार की रात का कोई ना सवेरा होता
तो कितना अच्छा होता, तो कितना अच्छा होता
पास रहकर भी बहुत दूर बहुत दूर रहे
एक बंधन में बंधे फिर भी तो हम दूर रहे
मेरी राहों में ना उलझन का अँधेरा होता
दिल मिले आँख मिली, प्यार ना मिलने पाये
बाग़बाँ कहता है दो फूल ना खिलने पाये
अपनी मंज़िल को जो कांटो ने ना घेरा होता
अजब सुलगती हुयी लकड़ियां हैं जगवाले
मिले तो आग उगलते, फटें तो धुआँ करे
अपनी दुनिया में भी सुख चैन का फेरा होता