गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - लता मंगेशकर - मन्ना डे | संगीत - राहुल देव बर्मन | फ़िल्म - बहारों के सपने | वर्ष - 1967
View in Romanचुनरी सम्भाल गोरी
उड़ी चली जाए रे
मार ना दे डंक कहीं
नज़र कोई हाय
देख देख पग न फिसल जाए रे
फिसलें नहीं चल के कभी दुख की डगर पे
ठोकर लगे हँस दें हम बसने वाले दिल के नगर के
अरे हर कदम बहक के संभल जाए रे
किरने नहीं अपनी, तो है बाहों की माला
दीपक नहीं जिन में उन गलियों में हैं हमसे उजाला
अरे धूल ही पे चांदनी खिल जाए रे
पल छिन पिया पल छिन अँखियों का अंधेरा
रैना नहीं अपनी पर अपना होगा कल का सवेरा
अरे रैन कौन सी जो न ढल जाए रे