अपनी कहो कुछ मेरी सुनो - The Indic Lyrics Database

अपनी कहो कुछ मेरी सुनो

गीतकार - नूर लखनवी | गायक - लता मंगेशकर - तलत मेहमूद | संगीत - सी. रामचंद्र | फ़िल्म - परछाईं | वर्ष - 1952

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अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
क्या दिल का लगाना भूल गए
रोने की आदत ऐसी पड़ी
हंसने का तराना भूल गए
काली रातें बीत गईं
फिर चाँदनी रातें आई हैं
दिल में नहीं उजियाला मेरे
ग़म की घटाएँ छाई हैं
प्रीत के वादे याद करो
क्या प्रीत निभाना भूल गए, क्या भूल गए
भुला हुआ है राह मुसाफ़िर
बिछड़ा हुआ है मंज़िल से
खोए हुए रस्ते का पता
तुम पूछ लो खुद अपने दिल से
चलते चलते इतना थके
मंज़िल का ठिकाना भूल गए, हाँ भूल गए
नज़दीक बढ़ो, नज़दीक बढ़ो
ये मौसम नहीं फिर आने का
नज़दीक शम्मा के जाने से
क्या हाल हुआ परवाने का
मिटने का फ़साना याद रहा
जलने का फ़साना भूल गए, क्या भूल गए