अपनी आज़ादी को हम हरगीज मिटा सकते नहीं - The Indic Lyrics Database

अपनी आज़ादी को हम हरगीज मिटा सकते नहीं

गीतकार - शकील बदायुँनी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - नौशाद | फ़िल्म - लीडर | वर्ष - 1964

View in Roman

अपनी आज़ादी को हम हरगीज मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकीन सर झुका सकते नहीं
हमने सदियों में ये आज़ादी की नेमत पाई है
सैकडों कुरबानियां दे कर ये दौलत पाई है
मुस्कुराकर खाई हैं सीनों पे अपने गोलियां
कितने वीरानों जो गुजरे हैं पर जन्नत पाई है
खाक में हम अपनी इज्जत को मिला सकते नहीं
क्या चलेगी जुल्म की एहल-ए-वफा के सामने
आ नहीं सकता कोई शोला हवा के सामने
लाख फौजे ले के आए अम्न का दुश्मन कोई
रुक नहीं सकता हमारी एकता के सामने
हम वो पत्थर हैं जिसे दुश्मन हिला सकता नहीं
वक्त की आवाज के हम साथ चलते जायेंगे
हर कदम पर ज़िन्दगी का रूख बदलते जायेंगे
गर वतन में भी मिलेगा कोई गद्दार-ए-वतन
अपनी ताकत से हम उस का सर कुचलते जायेंगे
एक धोका खा चुके हैं और खा सकते नहीं
हम वतन के नौजवान हैं, हम से जो टकरायेगा
वो हमारी ठोकरों से खाक में मिल जायेगा
वक्त के तुफान में बह जायेंगे जुल्म-ओ-सितम
आसमां पर ये तिरंगा उम्र भर लहरायेगा
जो सबक बापू ने सिखलाया वो भूला सकते नहीं