वो सुबह कभी तो आएगी - The Indic Lyrics Database

वो सुबह कभी तो आएगी

गीतकार - साहिर | गायक - मुकेश, आशा | संगीत - खय्याम | फ़िल्म - फ़िर सुबह होगी | वर्ष - 1958

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वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का साग़र छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नग़मे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
जिस सुबह की ख़ातिर जुग-जुग से हम सब मर-मरकर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम ज़हर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर एक दिन तो करम फ़रमाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इनसानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
इनसानों की इज़्ज़त जब झूठे सिक्कों में न तोली जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
दौलत के लिये जब औरत की इस्मत को न बेचा जाएगा
चाहत को न कुचला जाएगा, ग़ैरत को न बेचा जाएगा
अपने काले करतूतों पर जब ये दुनिया शरमाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारागारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फाँकेगा
मासूम लड़कपन जब गन्दी गलियों में भीख न माँगेगा
हक़ माँगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
फ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इनसाँ न जलाए जाएँगे
सीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे
ये नरक से भी गन्दी दुनिया जब स्वर्ग बनाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
जब धरती करवट बदलेगी, जब क़ैद से क़ैदी छुटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे, जब ज़ुल्म के बँधन टूटेंगे
जेलों के बिना जब दुनिया की सरकार चलाई जाएगी
उस सुबह को हम ही लाएँगे, वो सुबह हमीं से आएगी
वो सुबह हमीं से आएगी, वो सुबह हमीं से आएगी
मनहूस समाजी ढाँचों में जब ज़ुल्म न पाले जाएँगे
जब हाथ न काटे जाएँगे जब सर न उछाले जाएँगे
जेलों के बिना जब दुनिया की सरकार चलाई जाएगी
वो सुबह हमीं से आएगी
संसार के सारे मेहनतकश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बेघर, बेदर, बेबस इन्साँ तारीक बिलों से निकलेंगे
दुनिया अम्न और ख़ुशहाली के फूलों से सजाई जाएगी
वो सुबह हमीं से आएगी$