पैगाम दे रही है ये शाम ढलते ढलते - The Indic Lyrics Database

पैगाम दे रही है ये शाम ढलते ढलते

गीतकार - देव कोहली | गायक - उदित नारायण | संगीत - राम लक्ष्मण | फ़िल्म - अनमोल | वर्ष - 1993

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पैगाम दे रही है ये शाम ढलते ढलते
बनती है ज़िंदगी मैं हर बात बनते बनते (२)हमसफ़र के बिना तो मज़ा आये न
ज़िंदगी मैं अकेला रहा जाये ना
कोइ हमें मिल गया ऐसे ही चलते चलते
बनती है ज़िंदगी में हर बात बनते बनतेसजे दिल चढ़े मुस्कुराकर कोई
देखले हमको नज़रें उठाकर कोई
हम खाक हो ना जाएं यूँ आह भरते भरते
बनती है ज़िंदगी में हर बात बनते बनते