ओ ज़िंदगी के मालिक तेरा ही आसरा है - The Indic Lyrics Database

ओ ज़िंदगी के मालिक तेरा ही आसरा है

गीतकार - शकील | गायक - लता | संगीत - गुलाम मोहम्मद | फ़िल्म - नाज़नीन | वर्ष - 1951

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ओ ज़िंदगी के मालिक तेरा ही आसरा है
क्यूँ मेरे दिल की दुनिया बरबाद कर रहा है
ओ ज़िंदगी के मालिक तेरा ही आसरा है
तुझको मेरी क़सम है बिगड़ी मेरी बना दे
या तू नहीं है भगवन दुनिया को ये बता दे
ऊँचा है नाम तेरा अपनी दया दिखा दे
क्या मेरी तरह तू भी मजबूर हो गया है
ओ ज़िंदगी के मालिक तेरा ही आसरा है
ख़ामोश है बता क्यूँ सुन कर मेरा फ़साना
क्या पाप है किसी से दुनिया में दिल लगाना
अच्छा नहीं है मालिक दुखियों का घर जलाना
ख़ुद ढाये ख़ुद बनाये आख़िर ये खेल क्या है
ओ ज़िंदगी के मालिक तेरा ही आसरा है
बरबादियों का मेरी अंजाम जो भी होगा
ठुक्रा के मेरी हस्ती नाकाम तू भी होगा
गर मिट गई मोहब्बत बदनाम तू भी होगा
यूँ बेवजह किसी का दिल तोड़ना बुरा है