हुस्न पहाड़ कास - The Indic Lyrics Database

हुस्न पहाड़ कास

गीतकार - | गायक - लता मंगेशकर, सुरेश वाडेकर | संगीत - रवींद्र जैन | फ़िल्म - राम तेरी गंगा मैली | वर्ष - 1985

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ल: आऽ
हुस्न पहाड़ों का
ओ सायबा हुस्न पहाड़ों का
क्या कहना के बारहों महीने यहाँ मौसम जाड़ों का

सु: रुत ये सुहानी है
मेरी जाँ रुत ये सुहानी है
के सर्दी से डर कैसा संग गर्म जवानी है -२ओ होऽ
ल: ओऽ
तुम परदेसी किधर से आये
आते ही मेरे मन में समाये
करूँ क्या हाथों से मन निकला जाये -२
सु: छोटे-छोटे झरने हैं
के झरनों का पानी छू के कुछ वादे करने हैं
ल: झरने तो बहते हैं
क़सम ले पहाड़ों की जो कायम रहते हैंदो: humming
सु: खिले-खिले फूलों से भरी-भरी वादी
रात ही रात में किसने सजा दी
लगता है जैसे यहाँ अपनी हो शादी -२
ल: क्या गुल बूटे हैं
पहाड़ों में ये कहते हैं परदेसी तो झूठे हैं
सु: हो
हाथ हैं हाथों में
ल: के रस्ता कट ही गया इन प्यार की बातों में
दो: दुनिया ये गाती है
सुनो जी दुनिया ये गाती है
कि प्यार से रस्ता तो क्या ज़िंदगी कट जाती है -२