गुज़रा ज़माना हाये गुज़रा ज़माना—बीना चौधरी - The Indic Lyrics Database

गुज़रा ज़माना हाये गुज़रा ज़माना—बीना चौधरी

गीतकार - | गायक - बीना चौधरी | संगीत - | फ़िल्म - ? (गैर फिल्म) | वर्ष - 1950

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गुज़रा ज़माना हाये गुज़रा ज़माना
ना भूल सकी अब तक चाहती हूँ भुलानाउस नन्न्हीं नन्न्हीं घास पे जा पाँव फैलाना
फूलों को तोड़ तोड़ के वो हार बनाना
मन्दिर की छाँव के तले वो हँसना हँसाना
उस बूढ़े पुजारी का हमसे प्रेम जताना
खोयी हुई नज़रों से मन का गीत सुनाना
ना भूल सकी ...उनके महल में हँस रही है आज रागिनी
रोती है झोंपड़ी में हाये मेरी ओढ़नी
बिगड़ी तो ऐसे बिगड़ी है अब तक नहीं बनी
ख़ुशियों को चूमते हैं क़िस्मत के वो धनी
अब मौत भी करती है क्यूँ आने में बहाना
ना भूल सकी ...हैं फूल भी वैसे ही मन्दिर भी वही है
गलियाँ वही पुरानी और घर भी वही है
बुलबुल के गीत भी हैं सरवर भी वही है
सब कुछ वही है पर नहीं काजल का सिर्हाना
ना भूल सकी ...