तुम रुठि रहौ मैं मनता राहुं - The Indic Lyrics Database

तुम रुठि रहौ मैं मनता राहुं

गीतकार - हसरत जयपुरी | गायक - लता मंगेशकर, मुकेश | संगीत - शंकर, जयकिशन | फ़िल्म - आस का पंछी | वर्ष - 1961

View in Roman

मु : तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूँ -२
कि इन अदाओं पे और प्यार आता है -२
ल : थोड़े शिक़वे भी हों कुछ शिकायत भी हो -२
तो मज़ा जीने का और भी आता है -२मु : हाय दिल को चुराकर ले गया
मुँह छुपा लेना हमसे वो आपका
देखना वो बिगड़ कर फिर हमें
और दांतों में ऊँगली का दाबना
ओ मुझे तेरी क़सम यही समाँ मार गया
इसी जलवे पे तेरे दोनों जहाँ हार गया
तुम रूठी रहो ...
ल : थोड़े शिक़वे भी ...ये न समझो कि तुमसे दूर हूँ
तेरे जीवन की प्यार भरी आस हूँ
चाँद के संग जैसे है चाँदनी
वैसे मैं भी तेरे दिल के पास हूँ
हाय वो दिल नहीं जो न धड़कना जाने
और दिलदार नहीं जो न तड़पना जाने
थोड़े शिक़वे भी ...
मु : तुम रूठी रहो ...चाहें कोई डगर हो प्यार की
ख़त्म होगी न तेरी-मेरी दास्ताँ
दिल जलेगा तो होगी रोशनी
तेरे दिल में बनाया है आशियाँ
ओ शरद पूनम की रंग भरी चाँदनी
मेरी सब कुछ मेरी तक़दीर मेरी ज़िन्दगी
तुम रूठी रहो ...