जब नाम-ए-मुहब्बत लेके किसी नादान ने दामन फैलाया - The Indic Lyrics Database

जब नाम-ए-मुहब्बत लेके किसी नादान ने दामन फैलाया

गीतकार - मजरूह | गायक - आशा: | संगीत - एस डी बर्मन | फ़िल्म - काला पानी | वर्ष - 1958

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जब नाम-ए-मुहब्बत लेके किसी नादान ने दामन फैलाया
पहलू में अजब सा दर्द उठा
पलकों के साँसू थर्(सान्स उतर?)आया
दिल बैठे बैठे भर आया
(क्या कहिये हमे क्या याद आया)
अजी छोड़ो ये तराना है पुराना
उल्फ़त है दीवानों का फ़साना
जी लो जी लो ये है जीने का ज़माना
प्यार कैसा कहाँ की वफ़ा
(याद आई किसी की महकी हुई
साँसों की हवा हल्की हल्की)
वो श्याम वो रंगों के बादल
चुनरी वो मेरी ढल्की ढल्की
इक बात ने कितना तड़पाय
(क्या कहिये हमें क्या याद आया)
अजी छोड़ो ये तराना है पुराना
उल्फ़त है दीवानों का फ़साना
जी लो जी लो ये है जीने का ज़माना
प्यार कैसा कहाँ की वफ़ा
छोड़ो छोड़ो,छोड़ो छोड़ो,छोड़ो छोड़ो,अजी छोड़ो छोड़ो
अजी छोड़ो ये तराना है पुराना
उल्फ़त है दीवानों का फ़साना
जी लो जी लो ये है जीने का ज़माना
प्यार कैसा कहाँ की वफ़ा
(दुनिया से न रख उम्मीद-ए-वफ़ा
जब यूँ ही किसी ने समझाया)
कुच और बड़ी सीने की जलन
कुच और बड़ा ग़म का साया
रह रह के हमें रोना आया
क्या कहिये हमें क्या याद आया