उधर तुम हसीं हो - The Indic Lyrics Database

उधर तुम हसीं हो

गीतकार - मजरूह | गायक - रफ़ी, गीता | संगीत - ओपी नैय्यर | फ़िल्म - | वर्ष - 1955

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उधर तुम हसीं हो इधर दिल जवाँ है
ये रंगीन रातों की एक दास्ताँ है
ये कैसा है नग़्मा ये क्या दास्ताँ है
बता ए मोहब्बत मेरा दिल कहाँ है
मेरे दिल में आई हुई है बहार
क़यामत है फिर क्यूँ करूँ इन्तज़ार
गी: मोहब्बत कुछ ऐसी सज़ा दे रही है
कि खुद रात अंगड़ाई ले रही है
जिधर देखती हूँ नज़ारा जवाँ है
उधर तुम हसीं हो ...
लगती हैं तारों की परछाइयाँ
बुरी हैं मुहब्बत की तनहाइयाँ
गी: महकने लगा मेरी ज़ुल्फ़ों में कोई
लगीं जागने धड़कनें खोई-खोई
मेरी हर नज़र आज दिल की ज़ुबाँ है
उधर तुम हसीं हो ...
तरसता हूँ मैं ऐसे दिलदार को
जो दिल में बसा ले मेरे प्यार को
गी: तेरे ख़्वाब हैं मेरी रातों पे छाए
मेरे दिल पे हैं तेरी पलकों के साए
कि मेरे लबों पे तेरी दास्ताँ है
उधर तुम हसीं हो ...$