गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, सहगान | संगीत - चित्रगुप्त | फ़िल्म - कबली खान | वर्ष - 1963
View in Romanचलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न
लहू माँगती है ज़मीन-ए-वतन [२]चलो झूमते...( जहाँ हम जिये, जहाँ हम पले
ज़मीँ है वो दुश्मन के क़दमोँ तले ) -२ज़मीँ मत कहो है वो अपना बदन, अपना बदनचलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न
लहू माँगती है -ए-वतन
चलो झूमते...मुख़ालिफ़ कई हरिक? आशियाँ
कहीँ पर बगूले?, कहीँ आन्धियाँ
अरे लुट न जाये हमारा चमन, हमारा चमनचलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न
लहू माँगती है -ए-वतनचले सर लिये हथेली पे हम
शहीदों के ज़िन्दा लहू की क़सम
कि मरना वतन पे हमारा चलनचलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न
लहू माँगती है -ए-वतन