रात के हमसफर, थक के घर को चले - The Indic Lyrics Database

रात के हमसफर, थक के घर को चले

गीतकार - शैलेंद्र | गायक - आशा - रफी | संगीत - शंकर जयकिशन | फ़िल्म - एन ईव्निंग इन पेरिस | वर्ष - 1967

View in Roman

रात के हमसफर, थक के घर को चले
झूमती आ रही है सुबह प्यार की
देखकर सामने रूप की रौशनी
फिर लूटी जा रही है सुबह प्यार की
सोनेवालों को हँसकर जगाना भी है
रात के जागतों को सुलाना भी है
देती है जागने की सदा साथ ही
लोरीयाँ गा रही है सुबह प्यार की
रात ने प्यार के जाम भरकर दिए
आँखों आँखों से जो मैंने तुमने पिए
होश तो अब तलक जा के लौटे नहीं
और क्या ला रही है सुबह प्यार की
क्या क्या वादे हुए, किसने खाई कसम
इस नयी राह पर, हमने रखे कदम
छूप सका प्यार कब, हम छूपाये तो क्या
सब समझ पा रही है सुबह प्यार की