रात कली एक ख्वाब में आई - The Indic Lyrics Database

रात कली एक ख्वाब में आई

गीतकार - मजरूह सुल्तानपुरी | गायक - किशोर कुमार | संगीत - राहुल देव बर्मन | फ़िल्म - बुदढ़ा मिल गया | वर्ष - 1971

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रात कली एक ख्वाब में आई
और गले का हार हुई
सुबह को जब हम नींद से जागे
आँख उन्हीं से चार हुईं
चाहे कहो इसे मेरी मोहब्बत
चाहे हँसी में उड़ा दो
ये क्या हुआ मुझे मुझको ख़बर नहीं
हो सके तुम ही बता दो
तुम ने कदम तो रखा ज़मीन पर
सीने में क्यों झंकार हुई
आँखों में काजल और लटों में
काली घटा का बसेरा
सावली सूरत मोहनी मूरत
सावन रुत का सवेरा
जब से ये मुखड़ा दिल में खिला है
दुनिया मेरी गुलज़ार हुई
यूँ तो हसीनों के, माहजबीनों के
होते हैं रोज नज़ारे
पर उन्हें देख के देखा है जब तुम्हें
तुम लगे और भी प्यारे
बाँहों में ले लूँ ऐसी तमन्ना
एक नहीं कईं बार हुई