अजीब दास्तां है ये, कहाँ शुरू कहाँ ख़तम - The Indic Lyrics Database

अजीब दास्तां है ये, कहाँ शुरू कहाँ ख़तम

गीतकार - शैलेंद्र | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - शंकर जयकिशन | फ़िल्म - दिल अपना और प्रीत पराई | वर्ष - 1960

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अजीब दास्तां है ये, कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंज़िले हैं कौनसी, न वो समझ सके न हम
ये रोशनी के साथ क्यों, धुआं उठा चिराग से
ये ख़्वाब देखती हूँ मैं कि जग पड़ी हूँ ख़्वाब से
मुबारकें तुम्हें कि तुम किसी के नूर हो गए
किसी के इतने पास हो कि सबसे दूर हो गए
किसी का प्यार लेके तुम नया जहां बसाओगे
ये शाम जब भी आएगी, तुम हमको याद आओगे