इसको भी अपनाता चल - The Indic Lyrics Database

इसको भी अपनाता चल

गीतकार - नीरज | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - रोशन | फ़िल्म - नई उमर की नई फसल/नए जमाने की नई फसल | वर्ष - 1965

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#हुम्मिन्ग #इसको भी अपनाता चल, उसको भी अपनाता चल
राही हैं सब एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल
इसको भी अपनाता चल, उसको भी अपनाता चलइधर कफ़न तक नहीं लाश पर उधर नुमायिश रेशम की
यहाँ स्वयंवर करे चाँदनी वहाँ न रात कटे ग़म की
धरती कंकर पत्थर मारे अम्बर उगले अंगारे
कोई पूछे बात न इस बगिया में दुखिया शबनम कीसुख की उम्र बढ़ाता चल, दुख को कफ़न ओढ़ाता चल
मिले जहाँ भी महल उसे कुटिया के पास बुलाता चल
इसको भी अपनाता चल, उसको भी अपनाता चलबिका-बिकी सब ओर मची है आने या दो आनों पर
इस्मत बिके दोराहों पर तो प्यार बिके दूकानों पर
डगर-डगर पर मंदिर मस्जिद क़दम क़दम पर गुरुद्वारे
भगवानों की बस्ती में है ज़ुल्म बहुत इनसानों परखिड़की हर खुलवाता चल, साँतल (?) हर कटवाता चल
इस पर भी रोशनी न हो तो दिल का दिया जलाता चल
इसको भी अपनाता चल, उसको भी अपनाता चलरिदर्दे(?) के बीच खाइयाँ लहू बिछा मैदानों में
घूम रहे हैं युद्ध सड़क पर शांति छिपी शमशानों में
ज़ंजीरें कट गईं मगर आज़ाद नहीं इनसान अभी
दुनिया भर की ख़ुशी क़ैद है चाँदी जड़े मकानों मेंतट-तट रास रचाता चल, पनघट-पनघट गाता चल
प्यासा है हर प्राण, नयन का गंगा जल छलकाता चल
इसको भी अपनाता चल, उसको भी अपनाता चलनयन-नयन तरसे सपनों को आँचल तरसे फूलों को
आँगन तरसे त्योहारों को गलियाँ तरसें झूलों को
किसी होंठ पर बजे न बंसी किसी हाथ में बीन नहीं
उमर समुंदर की दे डाली किस ने चंद बबूलों कोसोई किरण जगाता चल, रूठी सुबहें मनाता चल
प्यार नक़ाबों में न बंद हो हर घूँघट खुलवाता चल
इसको भी अपनाता चल, उसको भी अपनाता चल