तेरे शहरों से राजा हमें - The Indic Lyrics Database

तेरे शहरों से राजा हमें

गीतकार - साहिर | गायक - रफ़ी, लता | संगीत - एन दत्ता | फ़िल्म - नाच घर | वर्ष - 1959

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तेरे शहरों से राजा हमें बन ही भले
वहाँ चैन से तो सोते थे सितारों के तले

तुझको भी देख लिया शहर भी तेरा देखा
जगमगाहट की हर इक तह में अँधेरा देखा
ऐश करते हैं तेरे शहर में दौलतवाले
और फाँकों के सितम सहते हैं मेहनत वाले
तेरे शहरों में ज़बाँ झूठी है दिल खोटे हैं
बिल्डिंगें ऊँची हैं इन्सान बहुत छोटे हैं
तेरे शहरों से
शोर इतना है कि दिल की भी सदा खो जाए
भीड़ ऐसी है के खुद अपना पता खो जाए
इश्क़ वालों को यहाँ रस्म-ए-वफ़ा याद नहीं
हुस्न को हुस्न की शर्म-ओ-हया याद नहीं
जिस्म से रूह का है बैर तेरे शहरों में
नज़र आते हैं सभी ग़ैर तेरे शहरों में
तेरे शहरों से
तूने जो ढंग निकाले हैं वे बेढंगे हैं
कपड़ा बुनती है मिल फिर भी बदन नंगें हैं
गल्ला छुप जाता है धनवानों के तहख़ानों में
लाखों मर जाते हैं तपते हुए मैदानों में
भूखे फ़ुटपाथों पे सोते हैं तेरे शहरों में
लोग इन्साफ़ को रोते हैं तेरे शहरों में
तेरे शहरों से
कहीं भाषा का झगड़ा है तो कहीं प्रांत का है
कहीं नस्लों का है फ़साद तो कहीं जात का है
अमन और चैन का है साया नहीं इन राहों में
दाढ़ियाँ चोटियाँ टकराती हैं चौराहों में
तेरे शहरों में मोहब्बत का पता क्या ढूँढें
आदमी तक नहीं मिलता है ख़ुदा क्या ढूँढें
तेरे शहरों से
तुमने राकेट की मदद ले के सितारे देखे
मौत के मुँह में हैं दुख-दर्द के मारे कितने
दाने-दाने को तरसते हैं बेचारे कितने
यही तहज़ीब है शहरों की तो जंगल अच्छे
जो हर इक घर पे बरसते हों वो बादल अच्छे
तेरे शहरों से$