हुस्न पे इतना एक कभी दो कभी - The Indic Lyrics Database

हुस्न पे इतना एक कभी दो कभी

गीतकार - फैज़ अनवर | गायक - कविता कृष्णमूर्ति, सहगान | संगीत - साजिद वाजिद | फ़िल्म - बागी | वर्ष - 2000

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हाय
हुस्न पे इतना मगरूर क्यूं है चार दिन की है ये ज़िंदगानी
एक चढ़ती उतरती नदी है जिसको समझा है तूने जवानी
हे हे हे ला ल ला
एक कभी हे दो कभी हे हे
एक कभी दो कभी तीन कभी चार चार आने लगे मेरी गली हाय
होय होय हे
एक कभी दो कभी ...भंवरे बहुत मैं अकेली कली
कोई कहे हे लैला मुझे हे हे
कोई कहे लैला मुझे
कोई कहे sweetyमुझे कोई कहे मनचली
हाय भंवरे बहुत ...शोख अदाएं ये तीखी निगाहें गुलाब सा महका बदन
रूप की मस्ती ये आँखों का जादू दीवानों का दीवानापन हो
देख लूं मैं हे हँस के जिसे हे हे
हँस के जिसे देख लूं मैं
समझो के बस मचने लगे दिल में उसके खलबली
हाय भंवरे बहुत ...आई है कैसी निगोड़ी जवानी के फंस गई मुश्किल में जां
घर से निकलना मुहाल हो गया है मैं जाऊं तो जाऊं कहां हो
सबसे हसीं हे सबसे जुदा हे हे
सबसे जुदा सबसे हसीं
मुझसी यहां कोई नहीं लड़की हूँ मैं चुलबुली
हाय भंवरे बहुत ...