पर्बतों के पेड़ोंपर शाम का बसेरा है - The Indic Lyrics Database

पर्बतों के पेड़ोंपर शाम का बसेरा है

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफी - सुमन कल्याणपूर | संगीत - खय्याम | फ़िल्म - शगून | वर्ष - 1964

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पर्बतों के पेड़ोंपर शाम का बसेरा है
सुरमई उजाला है चंपई अँधेरा है
दोनों वक़्त मिलते हैं दो दिलों की सूरत से
आसमां ने खुश होकर रंग सा बिखेरा है
ठहरे ठहरे पानी में गीत सरसराते हैं
भीगे भीगे झोंकों में खुशबुओं का डेरा है
क्यों ना जज़्ब जो जाएँ इस हसीन नज़ारे में
रौशनी का झुरमुट है मस्तियों का घेरा है
अब किसी नज़ारे की दिल को आरज़ू क्यों हो
जब से पा लिया तुमको सब जहान मेरा है